Tuesday, August 2, 2011

बिकाश दा

सफ़ेद, कपडे और बाल
भेद, कोलरिज का हाल
शब्द, जान उनमें ड़ाल
कभी, क्रिटिक की खाल
स्नेह, छात्रों का पाल
दा, अब सिर्फ याद ही संभाल...

    

लकीरें

लकीरें 

बंधी हुयी
और उन्मुक्त

मोटी
और पतली

टेढ़ी 
और सीधी

बनाएं
एक तस्वीर

अनोखी
और पहचानी
      

Monday, August 1, 2011

पानी का जादू

जादू किया है जिसने, वो तो है जी पानी,
सबुज कहो या हरा, या कहो तुम धानी.
गहरा है ये जादू, बात मैंने ये मानी.

नवीन कोमल कोपल, जैसे बोलें मीठी बानी,
बूढ़े पुलकित पत्तों ने भी कैसी खुशी जानी.
नूतन हुयी धरती, बन गयी ये तो रानी!