Showing posts with label Seasons. Show all posts
Showing posts with label Seasons. Show all posts

Monday, August 1, 2011

पानी का जादू

जादू किया है जिसने, वो तो है जी पानी,
सबुज कहो या हरा, या कहो तुम धानी.
गहरा है ये जादू, बात मैंने ये मानी.

नवीन कोमल कोपल, जैसे बोलें मीठी बानी,
बूढ़े पुलकित पत्तों ने भी कैसी खुशी जानी.
नूतन हुयी धरती, बन गयी ये तो रानी!   








Tuesday, June 22, 2010

शैतान सूरज

प्रायः ही यह टीस उठती है;
हाँ, कभी उन्नीस बीस होती है।
कभी आते हैं बादल काले घने;
बूंदों की आशा, उस पल बने।
पर फिर वो झांके, सूरज शैतान;
बादल कैसे हांके - करे हैरान!

http://farm3.static.flickr.com/2073/1582011568_f017b7645c.jpg

Monday, June 14, 2010

ऐसे भी और वैसे भी

सूखी धरती, समुन्दर हो जाती
दुःख हरती: फूली ना समाती

नदी पर, गयी भर
इतना क्यूँ , पानी झर झर
गिरते पेड़, इंसान थर थर .

ऐ प्रकृती देख, तेरे ये खेल अनेक
कोई न समझे : कोशिश कर ले चाहे और एक!

Tuesday, June 8, 2010

8 June 2010

Soon,

Boon;

Monsoon !