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Monday, August 1, 2011
Tuesday, June 22, 2010
शैतान सूरज
प्रायः ही यह टीस उठती है;
हाँ, कभी उन्नीस बीस होती है।
कभी आते हैं बादल काले घने;
बूंदों की आशा, उस पल आ बने।
पर फिर वो झांके, सूरज शैतान;
बादल कैसे हांके - करे हैरान!
हाँ, कभी उन्नीस बीस होती है।
कभी आते हैं बादल काले घने;
बूंदों की आशा, उस पल आ बने।
पर फिर वो झांके, सूरज शैतान;
बादल कैसे हांके - करे हैरान!
Monday, June 14, 2010
ऐसे भी और वैसे भी
सूखी धरती, समुन्दर हो जाती
दुःख हरती: फूली ना समाती
नदी पर, गयी भर
इतना क्यूँ , पानी झर झर
गिरते पेड़, इंसान थर थर .
ऐ प्रकृती देख, तेरे ये खेल अनेक
कोई न समझे : कोशिश कर ले चाहे और एक!
दुःख हरती: फूली ना समाती
नदी पर, गयी भर
इतना क्यूँ , पानी झर झर
गिरते पेड़, इंसान थर थर .
ऐ प्रकृती देख, तेरे ये खेल अनेक
कोई न समझे : कोशिश कर ले चाहे और एक!
Tuesday, June 8, 2010
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